वह अकेली अपनी मर्जी से है, इसलिए नहीं कि कोई मनपसंद शख्स नहीं टकराया और समाज की कथित नैतिक मर्यादाओं और पाखंडों को किनारे रखकर अपनी स्वतंत्रता का जश्न मना रही है.
नई दिल्ली के तंग लाजपत नगर की गली के अपने घर की बालकनी में खड़ीं वे कई बार उन चीजों के बारे में सोचकर ही उचाट हो जाती हैं, जो कभी उनकी आंखों में चमक ला दिया करती थीं. जैसे धूल फांक रहा उनका गिटार, जिसके तारों को लंबे समय से छेड़े जाने का इंतजार है. प्यार का टूटना दर्दनाक है लेकिन उससे भी दर्दनाक है वफा निभाना. 39 साल की उम्र में चांदनी (कहने पर नाम बदल दिया गया), ने पक्का कर लिया है कि वे कभी शादी नहीं करेंगी. कला और संस्कृति सलाहकार चांदनी उस अकेली औरत आबादी का हिस्सा हैं जो तेजी से आर्थिक और राजनैतिक ताकत बन रही है.
2011 की जनगणना में एक तथ्य हैरान करने वाला है कि 35-44 वर्ष आयु वर्ग की ऐसी महिलाओं की संख्या में 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिन्होंने कभी शादी नहीं की. 2001 के मुकाबले इस आयु वर्ग में कुल महिला आबादी में वृद्धि 27 प्रतिशत दर्ज की गई. अब साधारण लगने वाले इस आंकड़े का मर्म समझने के लिए तैयार हो जाइए. ये आंकड़े उन अविवाहित, स्वतंत्र महिलाओं की बढ़ती तादाद और उनके विवाह के सामाजिक बंधन को सिरे से खारिज करने की नई हकीकत की तस्दीक करते हैं, जिसके कुछेक किस्से हम सभी के पास हैं.
यह भारत में शहरी अकेली औरत का दौर है. वह अपने सिवाए किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है और अपनी पढ़ाई-लिखाई और करियर के बल पर जिंदगी का पूरा लुत्फ उठा रही है. वह पैसे कमाने के लिए खूब मेहनत करती है और अगर पार्टियां पसंद हैं तो कुछ और मेहनत करती है. उसका कोई पार्टनर भी हो सकता है या फिर कोई कभी-कभार का दोस्त, या फिर कोई भी नहीं. वह खूब सैर-सपाटे करती है, अकेली या अजीज दोस्तों के साथ. उसे अकेलापन महसूस होता है, लेकिन उसे लगता है, शादी उसकी आजादी की बड़ी कीमत वसूलती है. उसे जीवन की संपूर्णता या बच्चों के लिए विवाह की आवश्यकता नहीं है, मातृत्व सुख के लिए वह बच्चे गोद ले सकती है या आइवीएफ की मदद ले सकती है.
हैदराबाद विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पुष्पेश कुमार कहते हैं, ''मैं अकेली महिलाओं की बढ़ती संख्या को शहरों के विस्तार और उनमें प्रवासियों की बढ़ रही तादाद से जोड़ कर देखता हूं, जिसमें अपने स्वभाव के लोगों के साथ मेल-जोल के अवसर बढ़ गए हैं. बेशक कई महिलाएं विभिन्न मजबूरियों के कारण अकेले रहने को विवश होती हैं लेकिन कई के लिए यह सोचा-समझा विकल्प है.''
मर्जी से अकेली
कल्पना शर्मा के संकलन सिंगल बाइ च्वायस: हैपिली अनमैरिड वूमन में 27 से 70 वर्ष की आयु की 11 महिलाओं के लेख हैं. इसमें नारीवादी प्रकाशन संस्थान काली की संपादक 37 वर्षीया अदिति बिश्नोई अपने लेख 'स्लॉचिंग टुवर्ड्स सिंगलहुड' में लिखती हैं, ''मैंने कभी शादी नहीं की.. न ही कभी उन लाखों लोगों के सामने अटूट प्यार के लिए वादे (या करीब-करीब एक दासी जैसी सेवा का वादा, अगर आप औसत भारतीय महिला हैं) की जरूरत महसूस हुई, जिनकी रुचि बस शादी के मेन्यू और दुलहन के वजन और उसके रंग-रूप की चर्चा में रहती है. मैंने कभी भी गुप्त रिश्तों या यहां तक कि किसी स्थाई प्रेमी (पुरुष हमेशा, हमेशा डेटिंग की शुरुआती रस्मों के बाद निराश करते हैं) के लिए कभी बहुत कशिश महसूस नहीं की है... संक्षेप में, अपने आप से मिलें, एक सच्ची संगिनी, एक यकीनन अकेली लड़की, जो अपने अंदर 'भव्य प्रेम' या फिर 'शाश्वत दांपत्य सुख' की भूख को नहीं जगा सकी.''
ऋषिकेश और दिल्ली के बीच वक्त बिताने वाली और रहस्य-रोमांच की दुनिया में गहरी रुचि रखने वाली 37 वर्षीया मीरा भोजवानी ने बचपन में ही तय कर लिया था कि वे कभी शादी नहीं करेंगी. अपनी मां को दो त्रासद विवाहों में जीते देख मीरा और उनकी बहन, दोनों का शादी पर से विश्वास तो बचपन में ही टूट हो गया. वे कहती हैं, ''बचपन में ही एक बड़ा बदलाव हुआ था. आज मैं आर्थिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से स्वतंत्र हूं.''