महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल इलाक़ों में रहने वाले लोगों का जीवन हमेशा से ही तलवार की धार पर रहा है.
ये इलाके अब नक्सली हिंसा का केंद्र बन चुके हैं और लोगों का जीवन और भी मुश्किलों भरा बनता जा रहा है.
मगर इन आदिवासी क्षेत्रों में अन्दर-अन्दर एक और आग सुलग रही है जिसे समय रहते निपटा नहीं गया तो यहाँ की स्थिति और भी बेकाबू होने की आशंकाएं पैदा कर रही हैं.
सभी लोग इसको लेकर चिंतित हैं क्योंकि परिस्थितियाँ टकराव की तरफ तेज़ी से बढ़ रही हैं.
माओवादी छापामारों और सुरक्षा बलों के बीच छिड़े युद्ध के बीच पिसते यहाँ के आदिवासी अब धर्म परिवर्तन और घर वापसी के बीच पिसने लगे हैं.
गढ़चिरौली महाराष्ट्र का आदिवासी बहुल इलाक़ा है जहां की बड़ी आबादी जंगलों में रहती है.
पिछले कुछ सालों से ईसाई मिशनरी यहाँ काम करते आ रहे हैं. अब उन पर आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लग रहा है
गढ़चिरौली जिले का सुदूर बिजयपार गाँव.
यहाँ तनाव है क्योंकि यहाँ के रहने वाले कुछ आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपना लिया है.
फलस्वरूप बिजयपार की ग्रामसभा ने ईसाई बनने वालों का सामाजिक बहिष्कार करना शुरू कर दिया है. अब न तो कोई इन परिवारों के घर जाता है और न ही अपने घर बुलाता है. यहाँ तक कि सामाजिक आयोजनों में भी इन परिवारों को शामिल होने की अनुमति नहीं है.
हद तो तब हो गई जब ग्रामसभा ने इन परिवारों पर अर्थ दंड भी लगा दिया.
दुलाराम पहाड़ सिंह कुमरे बिजयपार ग्रामसभा के सचिव हैं. वो बताते हैं कि उनके गाँव में आदिवासियों के कुल 12 ऐसे घर ऐसे हैं जिनके सदस्यों ने अपना धर्म त्याग दिया है और ईसाई बन गए.
कुमरे कहते हैं, "जो लोग ईसाई बने हैं उनको दंड तो भरना पड़ेगा. उन्होंने ऐसा कर हमारी परंपरा और हमारे पूर्वजों के इष्ट देव का अपमान किया है. इन लोगों ने हमारी संस्कृति को भी त्याग दिया है."