जैसे-जैसे मध्य-पूर्व की गर्मियां कम हो रही हैं, क्या वैसे-वैसे यह क्षेत्र नए 'अरब स्प्रिंग' (अरब क्रांति) की ओर बढ़ रहा है?
इराक़ में प्रदर्शनकारी गलियों में मारे गए हैं. लेबनान में प्रदर्शनकारियों ने देश को घुटनों पर ला दिया है. प्रधानमंत्री साद अल-हरीरी इस्तीफ़ा दे दिया है. हालिया हफ़्तों में मिस्र के सुरक्षाबलों ने राष्ट्रपति अब्दुल फ़तह अल-सीसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की कोशिशों को नाकाम किया है.
इराक़, लेबनान और मिस्र में बहुत अंतर है लेकिन सभी प्रदर्शनकारियों की एक सी ही शिकायतें हैं. अरब मध्य-पूर्व के लाखों लोग इन प्रदर्शनों में शामिल हैं जिनमें अधिकतर युवा हैं.
एक अनुमान के हिसाब से इस क्षेत्र की 60 फ़ीसदी जनता 30 वर्ष की आयु से कम है. एक युवा जनसंख्या एक देश के लिए बहुत बड़ी संपत्ति हो सकती है. लेकिन वह भी तब जब देश की अर्थव्यवस्था, शैक्षिक प्रणाली और देश के संस्थान उनकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए ठीक से काम करें. इनमें कुछ उम्मीदें होती हैं जो पूरी नहीं हो रही हैं.
लेबनान, इराक़ और इस क्षेत्र के कहीं के भी युवा अक्सर हताशा का शिकार हो जाते हैं और उनका ग़ुस्सा आसानी से फूट पड़ता है
अनियंत्रित भ्रष्टाचार
इन देशों में दो सबसे बड़ी शिकायतें भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी को लेकर हैं, जो एक दूसरे का कारक हैं.
भ्रष्टाचार को लेकर एक वैश्विक सूचकांक के अनुसार, इराक़ दुनिया के सबसे अधिक भ्रष्ट देशों में से एक है. लेबनान इस मामले में बेहतर है लेकिन उसकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.
भ्रष्टाचार एक कैंसर की तरह है, जो लोग इसका शिकार होते हैं वह उनकी महात्वाकांक्षाओं और उम्मीदों को खा जाता है.
एक भ्रष्ट तंत्र में हारा हुआ शख़्स शिक्षित होने के बावजूद रोज़गार न मिलने और छोटे गुटों द्वारा उसकी जेब पर डाका डालने पर बहुत ग़ुस्सा हो सकता है.
सरकार के न्यायालय, पुलिस जैसे संस्थान जब फंसे हुए हों तब यह पूरी प्रणाली के नाकाम होने की निशानी होती है.
लेबनान और इराक़ में प्रदर्शनकारी न केवल सरकार से इस्तीफ़ा मांग रहे हैं बल्कि उनकी यह भी मांग है कि शासन की पूरी प्रणाली में या तो कुछ परिवर्तन किए जाएं या उन्हें पूरी तरह बदल दिया जाए.