मोबाइल कंपनियों को सिर मुंडाते ही ओले क्यों पड़े: नज़रिया


एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा! बीते हफ्ते आया सुप्रीम कोर्ट का आदेश टेलीकॉम कंपनियों के लिए यही संदेश लेकर आया है.


सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि मोबाइल फ़ोन सर्विस देने वाली सभी कंपनियां मिलकर सरकार को क़रीब 90,000 करोड़ रुपये देंगी. सभी कंपनियों को इस रकम का एक हिस्सा देना पड़ेगा.


टेलीकॉम कंपनियों के लाइसेंस के अनुसार अपनी आय में से सरकार को लाइसेंस फ़ीस के लिए देना होता है. ये लाइसेंस फ़ीस कैसे तय की जाए, उसे लेकर सरकार और कंपनियों में मतभेद था जिस पर अब कोर्ट का फ़ैसला आया है.


टेलीकॉम कंपनियों के लिए ये मामला न निगलते बन रहा है और न उगलते. उन्होंने ये तय नहीं किया है कि दीवाली के ठीक पहले आए इस आदेश से कैसे निपटेंगी. लेकिन एक बात तो साफ़ है कि टेलीकॉम कंपनियों की वित्तीय हालत अब और खस्ता होने वाली है.


2016 में जब जियो ने अपनी सर्विस शुरू की थी तो उसने देश भर में मुफ़्त कॉल का वादा किया था. उसके अलावा, इंटरनेट डेटा की कीमतें काफी कम कर दी गई थीं. ग्राहकों को जियो की ये स्कीम बहुत पसंद आई और 10 करोड़ ग्राहक इकठ्ठा करने में उसे बस चंद महीने लगे.



इस मार से कोई कंपनी अछूती नहीं?


देश के सबसे नए मोबाइल टेलीकॉम कंपनी की इस मार से एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया और सरकारी कंपनी बीएसएनएल को सस्ती कीमतों की मार से उबरने का समय भी नहीं मिला है.


पिछले दो सालों में सभी कंपनियों को अपनी कॉलिंग दरों को कम करने पर मजबूर होना पड़ा है. जियो ने कम से कम 49 रुपये में महीने भर फ़ोन करने की सुविधा देकर उसे हर जेब के लायक बना दिया.


मोबाइल कॉल की कीमत पहले से ही गिर रही थी. इसलिए सभी कंपनियां डेटा से होनी वाली कमाई पर भरोसा कर रहे थे. भारत में अब मोबाइल डेटा की कीमतें दुनिया भर में सबसे सस्ती हो गयी हैं जिससे करोड़ों लोगों के लिए स्मार्टफ़ोन रोज़ की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गया है.