मोदी की चुनावी कामयाबी पर आर्थिक सुस्ती का कितना असर - नज़रिया


इस साल मई महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारी बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में लौटे थे. मोदी को ये विशाल जनादेश तब मिला, जब देश में बेरोज़गारी की दर 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर थी. ऐसे में बहुत से लोगों के ज़हन में ये सवाल उठा कि क्या बीजेपी ने चुनावों को आर्थिक क्षेत्र में प्रदर्शन से अलग करने में कामयाबी हासिल कर ली है.


मई 2019 में मिली जीत बहुत शानदार थी. क्योंकि मोदी ने 2014 के मुक़ाबले इस बार ज़्यादा सीटें जीती थीं. जबकि 2014 के चुनाव में विपक्ष में होने की वजह से उनके लिए राह आसान थी.


2019 के चुनाव में मोदी की जीत में बड़ा रोल कश्मीर में एक चरमपंथी हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक ने निभाया था. इससे सवाल ये उठा था कि क्या भारतीय वोटर के लिए रोज़ी-रोटी से ज़्यादा अहम मुद्दा राष्ट्रवाद है?


कुछ लोगों ने ये भी तर्क दिया कि 2019 में नरेंद्र मोदी की जीत की बड़ी वजह उनकी कल्याणकारी योजनाएं थीं. उन्होंने घर और शौचालय बनवाए थे और ग़रीबों को गैस कनेक्शन बांटे थे.


लेकिन, अब हम ये कह सकते हैं कि राष्ट्रवाद और जनकल्याण के इस आयाम की भी अपनी सीमाएं हैं.


सेंटर फ़ॉर द मॉनिटरिंग ऑफ़ इंडियन इकोनॉमी की पिछले महीने आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा में बेरोज़गारी की दर पूरे देश से ज़्यादा यानी 28.7 फ़ीसद है. कल आए हरियाणा चुनाव के नतीजों से साफ़ हो गया कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनावों के मुक़ाबले विधानसभा चुनाव में 22 प्रतिशत वोट गंवा दिए.


बीजेपी ने ऐलान किया था कि उसका लक्ष्य राज्य की 90 में से 75 विधानसभा सीटें जीतने का है. लेकिन, पार्टी कुल 40 सीटें ही जीत सकी, जो बहुमत से 6 सीट कम है.


हालांकि, बहुमत न मिलने के बावजूद बीजेपी, हरियाणा में सरकार बनाने जा रही है. लेकिन, नतीजों से साफ़ है कि अगर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने ये चुनावी लड़ाई जीत के लिए लड़ी होती, तो बीजेपी के हाथ से हरियाणा निकल भी सकता था.