मैनहट्टन के ऊपरी पश्चिमी क्षेत्र में बने हजारों दूसरे घरों की तरह ही दिखता है 82वीं स्ट्रीट का मकान नंबर 155.
भूरे बलुआ पत्थर से बनी इस इमारत पर विक्टोरियन शैली की नक्काशी है, जो यहां सामान्य बात है.
फिर भी यह इमारत ख़ास है क्योंकि 1948 में यहां 22 साल के युवा लॉ ग्रैजुएट फ़िदेल कास्त्रो ने हनीमून मनाया था.
कास्त्रो हवाना के मुखर छात्र नेता थे, लेकिन 1948 में किसी ने नहीं सोचा था कि वह जल्द ही अपने देश में क्रांति की अगुवाई करेंगे, 20वीं शताब्दी की एक मशहूर शख्सियत बन जाएंगे और क्यूबा को अमरीका के साथ शीत युद्ध की तरफ ले जाएंगे जो आज तक जारी है.
1948 में कास्त्रो पहली बार अमरीका की यात्रा पर थे और उन्हें तुरंत ही न्यूयॉर्क से प्यार हो गया था. वह वहां के सब-वे, गगनचुंबी इमारतों और गोमांस के आकार से हैरान थे.
अमरीका में साम्यवाद विरोधी माहौल के बावजूद वह न्यूयॉर्क में किताब की किसी भी दुकान से कार्ल मार्क्स की "दास कैपिटल" खरीद सकते थे.
कास्त्रो और कुलीन वर्ग की उनकी पहली पत्नी मिर्ता डियाज़-बालार्ट तीन महीने तक न्यूयॉर्क के इस ख़ूबसूरत घर में रहे थे.
यूक्रेन के ऑर्थोडॉक्स चर्च के सामने आज भी यह इमारत है. करीब सात दशकों में किराये को छोड़कर यहां कुछ नहीं बदला है.
मैं कास्त्रो की कई न्यूयॉर्क यात्राओं की टूटी कड़ियों की तलाश कर रहा था. 1960 में अमरीका ने उनको विलेन बनाना शुरू कर दिया था.
उनके साम्यवादी सुधारों ने जल्द ही उनको सोवियत संघ का दुलारा बना दिया. उनका गठबंधन अक्टूबर 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट का कारण बना, जब दुनिया परमाणु महाविनाश के निकट पहुंच गई थी.