क्या आप किसी पार्टी में जाने के ख़याल से ही कांपने लगते हैं?
भरी महफ़िल में अपनी बात खुलकर कहने से कतराते हैं?
मीटिंग में प्रेज़ेंटेशन देने से घबराते हैं?
अगर आपका तजुर्बा ऐसा है, तो दुनिया में आप ऐसे अकेले इंसान नहीं. बहुत से लोग हैं जो संकोची और शर्मीले होते हैं. जिन्हें अजनबी लोगों से बात करने में हिचक होती है. जो पार्टियों में जाने से कतराते हैं.
लंदन के किंग्स कॉलेज में प्रोफ़ेसर थैलिया इले कहती हैं कि, "बहुत से लोगों का स्वभाव शर्मीला होता है. वो बचपन से ही ऐसी प्रकृति दिखाते हैं, जो आगे चलकर उनका व्यक्तित्व बन जाता है. जबकि बहुत से बच्चे अनजान लोगों से बात करने में कोई झिझक नहीं महसूस करते. जल्द ही उनका ये स्वभाव उनकी पर्सनैलिटी बन जाता है.
प्रोफ़ेसर इले कहती हैं कि हमारे शर्मीले होने में एक तिहाई योगदान हमारे वंश का का होता है, जबकि बाक़ी आस-पास के माहौल का नतीजा होता है.
हमें अपने मां-बाप से जीन में शर्मीलेपन के गुण मिलते हैं. कई बार जुड़वां बच्चों में से कोई एक बातूनी और मिलनासर होता है, तो दूसरा संकोची मिज़ाज का हो जाता है. वहीं दो भाई-बहनों में चूंकि आधे जीन ही एक जैसे होते हैं, तो उनके स्वभाव में ज़्यादा फ़र्क देखा जाता है.