दुनिया को नई लोकतांत्रिक क्रांति की ज़रूरत है?

जैसे कि कोई शर्मीला बच्चा बहुत सारे बच्चों के बीच भी अलग-थलग रहता है. वो दूसरे बच्चों के साथ नहीं खेलता. आगे चलकर उसका ये बर्ताव उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है.


यानी हमारे मिज़ाज पर मां-बाप से मिले जीन के साथ-साथ माहौल का भी उतना ही असर होता है.


तो क्या शर्मीला होना बुरी बात है? लंदन के सेंटर फॉर एंग्ज़ाइटी डिसऑर्डर ऐंड ट्रॉमा की मनोवैज्ञानिक क्लोय फ़ोस्टर कहती हैं कि शर्मीला स्वभाव बहुत आम बात है. और इससे तब तक कोई दिक़्क़त नहीं होती, जब तक लोग मेल-जोल से कतराने नहीं लगते.


क्लोय फ़ोस्टर उन लोगों का इलाज करती हैं जो शर्मीले मिज़ाज के चलते बहुत सी चीज़ों से कतराने लगते हैं. जैसे कि वो दफ़्तर में लोगों से बात नहीं करते. किसी पार्टी या सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से बचते हैं. उन्हें डर लगता है कि लोग उन्हें देखकर उनके बारे में राय क़ायम कर लेंगे.


इले कहती हैं कि ये गुण इंसान के विकास की प्रक्रिया के दौरान उसके किरदार का हिस्सा बन गए हैं.


वो कहती हैं कि "किसी भी समुदाय में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो सबसे मेल-जोल बढ़ाते हैं. वहीं, कुछ ऐसे भी होते हैं, जो किसी अजनबी से मिलने में हिचक महसूस करते हैं. उन्हें इसमें ख़तरा लगता है."