दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में होस्टल फ़ीस बढ़ाए जाने का मामला इतना तूल पकड़ा कि इसके विरोध में छात्र न केवल सड़कों पर उतर आए बल्कि सोमवार को देश की संसद की तरफ कूच भी कर दिया. हालांकि केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों के इस संसद मार्च को पुलिस ने रोक दिया और इलाके में धारा 144 लगा दी.
मंगलवार को संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में इस पर हंगामे के बाद सदन को स्थगित करना पड़ा.
जानते हैं कि आख़िर क्या है पूरा मामला?
जेएनयू प्रसाशन ने एक नवंबर को एक विज्ञप्ति जारी कर इस विश्वविद्यालय के हॉस्टल में रह रहे छात्रों से वसूले जा रहे शुल्क को बढ़ा दिया. इसमें कमरे का किराया से लेकर बिजली, पानी और मेंटेनेंस के शुल्क तक शामिल हैं.
जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़ विश्वविद्यालय परिसर के दो हॉस्टल में रहने वाले छात्र बिजली और पानी की कीमतें पहले से ही चुका रहे हैं लेकिन अन्य 16 छात्रावास के छात्रों को मेंटेनेस की ये फ़ीस नहीं देनी पड़ती थी.
जेएनयू रजिस्ट्रार की तरफ से जारी इस विज्ञप्ति के मुताबिक़ मेंटेनेस पर सालाना 10 करोड़ रुपए ख़र्च किए जाते हैं और अब देश के बाक़ी विश्वविद्यालयों की तरह ही यहां के सभी छात्रों को खपत के मुताबिक़ बिजली, पानी, अन्य सर्विस चार्ज (सैनिटेशन, मेंटेनेंस, रसोइया, मेस हेल्पर इत्यादि) चुकता करने होंगे. इस शुल्क को 1700 रुपए मासिक रखा गया.
जेएनयू के छात्र बढ़ी फ़ीस से नाखुश हुए और इसके विरोध में तब से ही जेएनयू परिसर के एडमिन ब्लॉक के पास धरने पर बैठे हैं.
जेएनयू के प्रशासनिक भवन पर छात्रों के लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद जेएनयू प्रशासन ने बढ़ी हुई फ़ीस को बीपीएल छात्रों के लिए कम करने की घोषणा कर दी लेकिन छात्रों ने यह कहते हुए इस आंदोलन को और तेज़ कर दिया कि पुराने शुल्क ही लागू किए जाएं, उन्हें इसमें किसी भी तरह की बढ़ोतरी मंज़ूर नहीं है.