इन दिनों बच्चे हद से ज्यादा नाजुक होते जा रहे हैं। छोटी सी बात होने पर वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं, आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब हमें अपने बचपन और हमारे बच्चों के बचपन के अंतर को जानने से ही मिलेगा।
इन 5 कारणों से बच्चे हो जाते हैं डिप्रेस
एकल परिवार
हम संयुक्त परिवारों में रहते थे। माता-पिता के प्यार के अलावा हमें दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ वगैरह का प्यार मिला। घरों में हमेशा चहल पहल और रौनक बनी रहती थी। लेकिन आज हमारे बच्चे छोटे एकल परिवारों में रह रहे हैं, जहां पिता के साथ-साथ मां भी दिनभर बाहर काम करती है। खाली घरों में बच्चों की देखभाल आया कर रही है।
सुविधा का अभाव
हमारे घरों पर बहुत से रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता था। उनके लिए घर के साथ-साथ हमें अपने दिल में भी जगह बनानी पड़ती थी। सुख सुविधा के अभाव में हम अनजाने में ही सही, मेहनती और जिम्मेदार बनते चले गए। अब बच्चों को न तो मेहमान दिखते हैं और न ही अभाव। उनके लिए हर चीज एक ऑर्डर पर हाजिर होती है।
अपनों का साथ
भाई-बहनों के साथ जब भी हमें डांट या मार पड़ती थी तो हमें कभी भी दुख या अपमान का एहसास नहीं होता था, क्योंकि जब अपनों का साथ होता है तो दर्द का पता ही नहीं चलता। सजा भी मजेदार लगती है। लेकिन आज अकेलेपन में छोटी सी डांट भी बच्चों को चुभने लगी है। उन्हें लगता है कि बहुत बड़ी बेइज्जती हो गई है।
मन की बात
उन दिनों परिवार में कोई न कोई बड़ा जरूर होता था, जैस चाचू /बड़ी मम्मी /भाभी आदि, जिनके साथ हम अपनेदिल की हर बात बेझिझक कह सकतेथे। जो बात हम माता-पिता से भी कहने में डरते, उनसेबिना हिचकिचाहट कह पाते, लेकिन आज इस सूने से घर में ऐसा कोई नहीं है जिसके पास बच्चों को समझने या सुनने की फुर्सत हो जिससे वो अकेलापन महसूस करता है।
सुरक्षित वातावरण
जब भी हम बोर होते, आसानी से बाहर जा सकतेथे और ताजी हवा में घंटों खेल सकतेथे। लेकिन अब ज्यादातर वक्त बच्चे गैजेट्स से चिपके हुए हैं। पैरेंट्स भी डर के कारण बच्चों को अकेले बाहर नहीं भेजते। तुलनात्मक रूप से हम सुरक्षित वातावरण में पले-बढ़ेथे, पर हमारे बच्चे प्रदूषण और मिलावट के वातावरण में रह रहे हैं। इससे उनमें नकारात्मक विचार पैदा होते हैं।
ऐसे में पेरेंट्स क्या करें
- जरूरत है अपने बच्चों का सबसे अच्छा दोस्त बनने की और उन्हें समझने की।
- पुराना माहौल बनाएं, जिससे हमारे बच्चे हमसे बिना किसी डर हर बात कह सकें।
- उन्हें यकीन दिलाएं कि चाहे जो भी हो, हम हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे।
- अपने बच्चों के बीच में विश्वास का एक मजबूत बंधन बना लें।
- बच्चों के जीवन में किसी भी तरह का सकारात्मक प्रभाव डालने की कोशिश करें।