पंजाब में एक दलित युवक की मौत के बाद विपक्ष के निशाने पर आई राज्य सरकार ने पीड़ित परिवार को मुआवज़े के तौर पर 20 लाख रुपए, मृतक की पत्नी को सरकारी नौकरी और बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का ऐलान किया है.
दलित युवक के परिवार ने सरकार की इस पेशकश के बाद आख़िरकार प्रदर्शन ख़त्म कर दिया है.
37 साल के जगमेल सिंह के साथ इस महीने की शुरुआत में क्रूर तरीक़े से मारपीट की गई थी और उन्हें जबरन पेशाब पिलाया गया था. बुरी तरह से ज़ख्मी जगमेल की चार दिन पहले ही अस्पताल में मौत हो गई थी, जिसके बाद से उनके परिवार वाले प्रदर्शन कर रहे थे. वो मुआवज़े के तौर पर 50 लाख रुपए और पीड़ित की पत्नी को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे थे.
उनका कहना था कि जब तक मांगे नहीं मानी जाएंगी, वो जगमेल का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे.
इससे पहले जब बीबीसी की टीम, पंजाब में संगरूर स्थित उनके चंगालीवाला गांव पहुंची, उस वक्त गांव के बाहर सड़क पर विरोध प्रदर्शन चल रहा था. गांव की गलियों में शोक को महसूस किया जा सकता था.
गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ दूरी पर एक शख़्स ट्रैक्टर लेकर खड़ा था.
जब हमने इस शख़्स से गांव के माहौल के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा, "सब आपके सामने ही है."
दरअसल 7 नवंबर को गांव के दलित युवक जगमेल को गांव के ही कुछ कथित ऊंची जांती वालों ने बुरे तरीके से मारा-पीटा था.
जगमेल का पहले पटियाला में इलाज हुआ और बाद में 16 नवंबर को पीजीआई में मौत हो गई.
हालांकि कुछ लोग ये भी कहते हैं कि ये जातिगत से ज़्यादा ये निजी लेन-देन का मामला था और घर वाले पीड़ित मृतक पर उलटा घर आकर गालियां देने का आरोप लगाते हैं.
लेकिन जिस क्रूर तरीक़े से जगमेल को खंभे से बांध कर पीटा गया, पानी मांगने पर पेशाब पिलाया गया, ये साधारण मामला नहीं लगता. बल्कि किसी ख़ास तरह की नफ़रत का मामला लगता है.
एक शख़्स पहचान ज़ाहिर ना करने की शर्त पर बात करने के लिए तैयार हुआ. उन्होंने कहा, "वो हमारे समुदाय से ही था. सीधा सा इंसान था. कई बार हमारे साथ भी लड़ लेता था. किसी से भी रोटी या पैसे मांग लेता था. उसके मन में कुछ नहीं था. अगर उसके मन में कुछ होता तो उनके साथ ना जाता. ग़रीबी की वजह से तनाव में भी रहता था."
रास्ते में मिले दो युवक, अभियुक्ता का घर दिखाने पर राज़ी हो गए. रास्ते में एक युवक बोला, "वैसे तो हमारे गांव में सरदारों के घर कम ही हैं, लेकिन ये चारों सरदार ही थे."
"बाक़ी आबादी दलितों की है?"
"नहीं, जट्टों के घर भी बहुत हैं."
"सरदार जट्ट नहीं हैं?"
"हाँ जी, हैं तो जट्ट ही, लेकिन इनके पास ज़मीने ज़्यादा हैं. इन्हें गांव में सरदार ही कहते हैं."
युवक घरों की ओर इशारा करके आगे निकल गए.
चारों अभियुक्तों के घर पास-पास ही थे. दो घरों को ताले लगे हुए थे.
एक घर खुला था. दरवाज़ा खटखटाने पर एक लड़की गेट खोलती है.
उसकी नज़र हाथ में पकड़े कैमरे पर पड़ती है. पीछे एक दो औरतों बैठी दिखती हैं.
"घर में है कोई, हमें मामले के बारे में कुछ बात करनी है."
"नहीं भाई जी, घर में कोई नहीं है."
दरवाज़ तुरंत बंद कर लिया गया.