उत्तराखंड में 50 फीसदी लोगों को सरकारी दफ्तरों में अपने काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ रही है। सबसे ज्यादा रिश्वत जमीन और प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री के लिए देनी पड़ रही है। सर्वे में 67 फीसदी लोगों ने माना कि जमीन, प्रॉपर्टी के पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार कार्यालय में उन्हें रिश्वत देने की जरूरत पड़ी। इसके बाद रिश्वत से काम करने में आरटीओ, टैक्स कार्यालय, बिजली विभाग का नंबर आता है। इन विभागों में अपने काम करवाने के लिए 33 फीसदी लोगों को रिश्वत देनी पड़ी है।
इंडिया करप्शन सर्वे 2019 की रिपोर्ट ने उत्तराखंड के सरकारी विभागों में चल रहे भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के खेल को फिर बेनकाब किया है। रिपोर्ट के अनुसार 25 फीसदी लोगों ने माना है कि उन्हें सरकारी काम कराने के लिए एक से ज्यादा बार रिश्वत देनी पड़ी है। प्रदेश में लोकायुक्त का पद रिक्त चल रहा है। जबकि विजिलेंस की कार्रवाई के बावजूद रिश्वत के मामलों पर ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है। देश के 20 राज्यों में हुए इस सर्वे में 56 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें सरकारी दफ्तरों में अपने काम करवाने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से घूस देनी पड़ी है।
61 फीसदी बोले, भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ
सर्वे में शामिल देशभर के करीब नौ हजार लोगों में से 61 फीसदी का मानना है कि भ्रष्टाचार में कमी नहीं आई है। राष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो 33 फीसदी लोगों को पुलिस, 44 फीसदी को प्रॉपर्टी पंजीकरण व 24 फीसदी को आरटीओ, टैक्स से संबंधित विभागों के काम में रिश्वत देनी पड़ी है। सबसे कम रिश्वतखोरी दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, गोवा व पश्चिम बंगाल में है।