वर्षों पहले जिस बस में निर्भया के साथ हुई थी दरिंदगी, आज उसे देखकर कांप जाएंगे आप

आज से सात साल पहले 16 दिसंबर की रात राजधानी दिल्ली की सड़कें जिस दरिंदगी की गवाह बनी थीं, उससे पूरा देश दहल गया था। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, देश के हर नागरिक की आंखों में अंगारे भड़क रहे थे और सबलोग न्याय की लड़ाई के लिए सड़क पर उतर आए थे। साल 2012 की वह रात बाकी रातों के मुताबिक ज्यादा अंधेरी थी। इतनी कि उसका कालापन अबतक खत्म नहीं हुआ। DL 1PC 0149 नंबर की बस राजधानी की चौड़ी सड़कों पर दौड़ती रही और उस रात हैवानियत की सारी हदें पार होती रहीं। किसी को पता न चला। वो बस जो निर्भया की जिंदगी का काल बन गई आज ऐसी अवस्था में है कि उसे देखकर कोई भी कांप जाए। 


निर्भया के साथ जिस बस में बर्बरता हुई वह किसी दिनेश यादव नाम के शख्स की थी। वह बस दिनेश को कभी वापस तो नहीं मिली, लेकिन उस रात के बाद बस भी कभी नहीं चली। आज सात साल बाद उस बस को देखने पर ऐसा लगता है मानो वह खुद निर्भया के साथ हुए हादसे को चीख-चीख कर दुनिया को बता रही हो


किसी कूड़े करकट की तरह पड़ी बस के अंदर लगे ओडोमीटर में 2,26,784 किलोमीटर तक की यात्रा दर्ज है। इसके आखिरी अंक उसी दौरान के हैं जब बस लगातार चल रही होगी, ओडोमीटर के अंक बढ़ रहे होंगे और उसके अंदर बिलखती, छटपटाती निर्भया किसी तरह उसे रोकने के लिए दरिंदों से लड़ रही होगी!


निर्भया के बयान के मुताबिक जिन सीटों पर उसके साथ इतने विभत्स वारदात को अंजाम दिया गया उन्हें देखकर तो किसी की भी आह निकल जाए। पीछे से दूसरी नंबर सीट आज भी आधे बिस्तर वाली स्थिति में पड़ी हुई है। यह सीट निर्भया के उस बयान की पुष्टि करती है जिसमें उसने पुलिस को बताया था कि एक ओर उसके दोस्त को पीटा जा रहा था, वहीं उसे बस की पीछे वाली सीट पर ले जाकर दरिंदे उसे नोच रहे थे। 


बस के पीले पर्दे जिसने उन दरिंदों को छिपा लिया था जब वह निर्भया के साथ हैवानियत कर रहे थे, वो आज बदरंग हो चुके हैं। ज्यादातर जगह से फट भी चुके हैं। सीट पर लगे गद्दे या तो हटा लिए गए हैं या उन्हें कीड़े खा गए हैं। अब बस की किसी खिड़की में शीशा भी नहीं है।


इस बस को पुलिस ने वारदात के अगले दिन यानी 17 दिसंबर, 2012 को दिल्ली के संत रविदास कैंप से बरामद किया था, जहां इस केस के 6 में से 4 दोषी रहते थे। इस बस से केस की जांच के दौरान पर्याप्त फॉरेंसिक सबूत जुटाए जाने थे। लगभग डेढ़ साल पहले तक इसे साकेत कोर्ट परिसर में पार्क कर सुरक्षित रखा गया था।


उस वक्त अगर यह बस लोगों के हाथ लग जाती तो शायद आज इसके पुर्जे भी न मिलते। लोगों के गुस्से से इसे बचाया जा सके और सारे सबूत पाए जा सकें इसके लिए पुलिस ने इसे बड़े ही गुपचुप तरीके से सुरक्षित रखने की योजना बनाई। पुलिस ने बेहद ही गुप्त तरीके से इस बस को त्यागराज स्टेडियम के बाहर खड़ी बहुत सी बसों के बीच ले जाकर खड़ा कर दिया था ताकि किसी को भी शक न हो।


इस बस में कोई प्रवेश न कर सके, यहां से सामान न चुरा सके और इसे तोड़-फोड़ या जला न सके, इसके लिए पुलिस ने सादे कपड़ों में सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए थे। यह वही जगह थी जहां सड़क के किनारे स्टेडियम के पास खड़ी इस बस की जांच फॉरेंसिक एक्सपर्ट ने की और बाद में इन्हीं सबूतों से 6 लोग दोषी सिद्ध हुए।