भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने जेएनयू जाने के लिए बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का समर्थन किया है। उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट 'लिंक्डइन' पर करीब 650 शब्दों के अपने ब्लॉग में जेएनयू, लोकतंत्र और भारत के मौजूदा हालात पर कई बातें लिखी हैं। राजन ने दीपिका के अलावा अपने ब्लॉग में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की भी इशारों ही इशारों में तारीफ की है। उन्होंने लिखा है कि जिस तरह लवासा ने अपने और अपने परिवार के उत्पीड़न के बावजूद काम करना जारी रखा, उससे पता चलता है कि आज भी कुछ लोग सच्चाई, स्वतंत्रता और इंसाफ के लिए न सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं बल्कि आदर्शों के लिए त्याग भी करते हैं।
रघुराम राजन ने अपने ब्लॉग में जो लिखा है, उसका सार कुछ इस तरह है:-
हाल के दिनों में भारत से आने वाली ख़बरें चिंताजनक रही हैं। नकाबपोश हमलावरों का एक समूह भारत की सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में घुस गया। हमलावर कैंपस में घंटों तक उत्पात मचाते रहे, छात्रों और फैकल्टी सदस्यों पर हमले करते रहे लेकिन पुलिस को इसकी जरा भी भनक भी नहीं लगी। अब तक ये साफ नहीं है कि हमलावर कौन थे लेकिन ये जरूर साफ़ है कि जिन पर हमला हुआ वो एक्टिविस्ट थे। ये भी साफ है कि इसमें न तो सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासन और न ही पुलिस ने कोई दखल दिया।
ये सब देश की राजधानी दिल्ली शहर में हुआ, जो अक्सर हाई अलर्ट पर रहती है। जब मशहूर विश्वविद्यालय भी युद्धक्षेत्र बन जाएं तब ऐसे आरोप विश्वसनीय लगने लगते हैं कि सरकार विरोधी आवाजों को दबाने की कोशिश कर रही है। अपने नेतृत्व को दोषी ठहराना आसान होता है लेकिन हम जैसे गौरवशाली लोकतंत्र में जनता के तौर हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है क्योंकि हम नागरिकों ने ही नेताओं को गद्दी पर बिठाया है और उनके घोषणापत्र को चुपचाप स्वीकार किया है। यही वजह है कि नेताओं ने हमारी चुप्पी को अपना आदेश बना लिया है।
सरकार से कुछ उम्मीद थी
हममें से कुछ लोगों को उम्मीद थी सरकार आर्थिक एजेंडे पर काम करेगी। कुछ लोग नेताओं के भाषण से सहमत हुए, उन भाषणों से सहमत हुए जिन्होंने हमारे पूर्वाग्रहों को हवा दी। हममें से कुछ लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा। हमें लगा कि राजनीति किसी और की समस्या है। हममें से कुछ लोगों को आलोचना करने से डर लगा था। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि हमने आलोचना करने वालों का बुरा हश्र होते हुए देखा था। लेकिन आखिरकार, लोकतंत्र सिर्फ एक अधिकार ही नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। ये देश की सुरक्षा करने का दायित्व भी है, सिर्फ चुनाव वाले दिन ही नहीं बल्कि हर रोज।