उत्तर प्रदेश में बांदा के अतर्रा की रहने वाली 120 साल की जनिया देवी के दिलोदिमाग को कोरोना ने एक बार फिर झिंझोड़ा है । 1920 में देश में महामारी की तरह फैले प्लेग से मिले उनके जख्म हरे हो गए हैं। तब वह युवा थीं। प्लेग से पति समेत 11 परिजनों की मौत हो गई थी।
उन्होंने हौसले से काम लिया। आज सामने कोरोना है और वह इससे लड़ने को अपने तीन पीढ़ी वाले परिवार की हिम्मत बढ़ा रही हैं। सबसे कहती हैं, डरो मत। तबै डागडर (डॉक्टर) न रहैं, अब बहुत हवैं’।उम्र का रिकार्ड बना चुकी जानिया देवी की याददाश्त अभी भी ठीकठाक है।
वर्ष 1920 में फैली प्लेग महामारी को याद करते हुए उन्होंने कांपती आवाज में बताया, प्लेग से उनके पति सुकुरुवा के अलावा बाबा अयोध्या, रिश्ते के फूफा बिलरा एवं नईहा सहित गांव के मल्हा रैकवार समेत घर के 11 सदस्यों की मौत हो गई थी। पूरे गांव ने जंगल में पनाह ली थी।
जब लोग मरने लगे तो वह भी बेटी को लेकर जंगल चली गईं थीं। गांव के लोग एक शव का अंतिम संस्कार करके लौटते थे तो घर पर एक और शव मिलता था। बहुत से शवों को मिट्टी में दफनाना पड़ा था। दफन करने की नौबत इसलिए आई क्योंकि जलाने के लिए लकड़ी की कमी हो गई थी। दहशत इतनी थी कि लोग जल्द से जल्द लाश से छुटकारा पाना चाहते थे।
बांदा मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर तेंदुही गांव में जनिया देवी छोटे बेटे 70 वर्षीय चुन्नू के साथ रहती हैं। वह बच्चों का हौसला बढ़ाते हुए कहती हैं हमारे जमाने मा तौ वैद्य तक नहीं रहैं, अब तौ हर गांव में डागडर (डाक्टर) हवैं। डरने की कोई बात नहीं है। जनिया की सबसे बड़ी बेटी फुलमतिया ही सौ साल की हैं।
वह नरैनी क्षेत्र के पतरहा गांव में रहती हैं। दूसरे पति से जनिया के तीन बेटे गंगादीन (88), जमुना (75) और चुन्नू (70) हैं, जो गांव में ही रहते हैं। जनिया नाती-पोतों से बतियाकर वक्त गुजारती हैं। अस्सी साल की उम्र पार कर चुके गांव के बेनी प्रसाद शुक्ला ने बताया कि वह जनिया को बचपन से देखते आ रहे हैं। ग्राम प्रधान अशोक सिंह ने बताया कि पूरे क्षेत्र में इतना उम्रदराज और कोई नहीं है।