"मेरी मां को गुज़रे हुए आज 13 दिन हो चुके हैं. लॉकडाउन की वजह से बोट एंकर पर और हम यहां फंसे हुए हैं. हम चिरु बंदरगाह पर हैं. गुजरात और तमिलनाडु के क़रीब एक हज़ार लोग इस द्वीप पर होंगे. आस पास के द्वीपों पर भी हमारे कई भाई फंसे हुए हैं. हम घर जाना चाहते हैं और सरकार से मदद की गुहार कर रहे हैं."
ये कहना है 44 वर्षीय प्रभाकर मंगेला का जो गुजरात के वलसाड के उमरगाम तहसील के रहने वाले एक मछुआरे हैं और कोरोना वायरस के लॉकडाउन की वजह से ईरान में फंसे हैं.
ईरान के भारतीय दूतावास से जब बीबीसी ने बात की तो जानकारी मिली कि ईरान के दक्षिण इलाक़े में 1000 के क़रीब भारतीय मछुआरे फंसे हुए हैं. इनमें से 750 तमिलनाडु के, 225 गुजरात के और 75 केरल से हैं. ये सभी ईरान के किश आइलैंड, मोघम और छीरू में फंसे हुए हैं.
कोरोना वायरस की वजह से ग्लोबल लॉकडाउन चल रहा है. ईरान भी उन देशों में से है जिसने अपनी सरहदें बंद कर दी हैं. ईरान अंतरराज्जीय ट्रैवल पर भी बैन है. अभी तक ईरान में कोरोना वायरस के 90 हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं वहीं मृतकों की संख्या पाँच हज़ार को पार कर गई है.
भारत में भी 3 मई पर पूरी तरह लॉकडाउन कर रखा है और हर तरह के यातायात पर प्रतिबंध है. इसकी वजह से भारत से ईरान गए हुए मछुआरे दो महीने से बोट पर दिन गुज़ार रहे हैं.
"हम दिन में एक ही बार खा सकें उतना राशन है"
सूर्या बारिया ने बीबीसी गुजराती से बात में कहा कि "मैं अपने अन्य साथियों के साथ चिरु बंदरगाह पर हूं. 27 फ़रवरी से हम कोई काम नहीं कर रहे और बोट पर ही रह रहे हैं. एक बोट पर पाँच से आठ लोग रह रहे हैं.
आख़िरी बार हमें मार्च महीने में राशन मिला, जो अब ख़त्म होने को आया है. जो बचा है उसमें से केवल एक वक्त का खाना ही खा पाते हैं. अब राशन कब मिलेगा इसकी हमें कोई जानकारी नहीं है. ऐसे जीना मुश्किल हो रहा है."
गुजरात में अपने परिवार के बारे में बताते हुए सूर्या ने कहा कि, "मेरा परिवार उमरगाम में रहता है. मेरा बेटा विकलांग है. पत्नी उसे अकेले संभालती है. इन सबके बीच में जब कोरोना के बारे में सुनते हैं तो चिंता और बढ़ जाती है."
इन मछुआरों को ख़ुद के स्वास्थ्य की चिंता के साथ साथ गुजरात में रह रहे अपने परिवारों से दूर रहने की चिंता भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रही है.