कोरोना वायरस: असम में मजदूरों को 'क्वारंटीन सेंटर' के बदले 'शेल्टर होम' में क्यों प्रशासन ने रखा?


असम के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कहा था कि बाहरी राज्यों में फंसे लोग अगर प्रदेश में लौटते हैं तो उनकों 14 दिनों के लिए होम क्वारंटीन या फिर सरकार द्वारा बनाए गए क्वारंटीन सेंटर में रहना ही होगा. लेकिन जोरहाट जिले के नौकचारी में नगालैंड से करीब एक सौ किलोमीटर पैदल चलकर आए 361 मजदूरों को जिन स्कूलों में ठहराया गया है उन्हें जिला प्रशासन क्वारंटीन सेंटर नहीं बल्कि 'शेल्टर होम' बता रहा है.


दरअसल भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय समेत राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र और गृह मंत्रालय ने कोविड-19 की बीमारी को देखते हुए क्वारंटीन सुविधाओं को लेकर कुछ दिशानिर्देश तय कर रखे है. क्वारंटीन सेंटर में साफ-सफाई से लेकर वहां काम करने वाले सभी कर्मियों को पीपीई किट उपलब्ध करवाना, सोशल डिसटेंसिंग का पालन करना और मनोचिकित्सक, लैब तकनीशियन की मौजूदगी जैसी बातें दिशानिर्देशों में है.


हालांकि नौकचारी की जिन तीन स्कूलों में इन मजदूरों को ठहराया गया है वहां क्वारंटीन सेंटर की ये सुविधाएं देखने को नहीं मिलतीं.


मरियानी के स्थानीय विधायक रूपज्योति कुर्मी जिला प्रशासन की व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते है और यह आरोप लगाते हैं कि प्रशासन क्वारंटीन सुविधाओं को लेकर दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर पा रहा है इसलिए अब इन क्वारंटीन सेंटरों को 'शेल्टर होम' बता रहा है.


विधायक रूपज्योति कुर्मी ने  कहा,"क्वारंटीन को लेकर प्रशासन की तैयारियां बहुत कमजोर दिख रही हैं. इतने दिनों तक प्रशासन ने ऐसी कोई तैयारी नहीं की जिससे ऐसा लगे कि संकट के समय स्थिति को संभाल लिया जाएगा. जिला प्रशासन महज साढ़े तीन सौ मजदूरों के लिए क्वारंटीन सेंटर की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है. जबकि हम सबने कोरोना वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए असम के मुख्यमंत्री राहत कोष में अपनी तनख़्वाह दी है. राज्य सरकार के कर्मचारियों से लेकर प्राइवेट सेक्टर के लोगों ने वित्तीय मदद की है ताकि कोविड-19 की इस बीमारी से मुकाबला कर सकें."


विधायक ने आरोप लगाते हुए कहा,"ये मजदूर भूखे-प्यासे इतनी दूर पैदल चलकर यहां पहुंचे है लेकिन बीते पांच दिनों तक प्रशासन ने इनको गंभीरता से नहीं लिया. यहां न खाने-पीने की कोई अच्छी सुविधा थी और न ही रहने के लिए आवश्यक चीजें इन्हें दी गई. जब मैंने मीडिया के जरिए प्रशासन के कामकाज पर सवाल खड़े किए तब जाकर आज छठे दिन जिला उपायुक्त इनका हाल जानने यहां आई है.कोविड-19 बीमारी के इस संकट से भरे दौर में कहीं भी लोगों को शेल्टर होम में रखने की बात हमने नहीं सुनी है. नियम कहते हैं कि नगालैंड से वापस अपने राज्य में लौटे इन सभी मजदूरों को 14 दिनों के लिए क्वारंटीन सेंटर में रखना जरूरी है ताकि बाकि का समाज सुरक्षित रहे."


इन आरोपों के बारे में पूछने पर जोरहाट जिले की उपायुक्त रोशनी कोराती कहती हैं,"यह क्वारंटीन सेंटर नहीं है ये 'शेल्टर होम' है. यहां ऐसे कुल तीन सेंटर हैं जिनमें 361 लोगों को रखा गया है. जिला प्रशासन इनके खाने-पीने की सारी सुविधाएं कर रही हैं. दरअसल इस समय राज्य के भीतर लोगों को आने-जाने की अनुमति दी जा रही है. ये सभी लोग असम से ही आ रहे हैं. इनमें से अधिकतर लोग गेलेकी नामक जगह से आए है. नगालैंड से नहीं आए है. देखा जाए तो तकनीकि तौर पर यह राज्य के भीतर ही मूवमेंट कर रहे हैं. लिहाजा सरकार के साथ इस विषय में बात हो रही है. हम जल्द ही इनको घर भेजने की व्यवस्था करेंगे. फिलहाल ये सार लोग स्वस्थ है. किसी एक व्यक्ति में भी कोई लक्षण देखने को नहीं मिला है."