भारत ने आपदा को, अवसर में बदल दिया ?विश्व की आज की स्थिति हमें सिखाती है कि इसका मार्ग एक ही है, आत्मनिर्भर भारत.


हमारे यहां, शास्त्रों में कहा गया है-एसपंथ- यानी यही रास्ता है, आत्मनिर्भर भारत.


साथियों, एक राष्ट्र के रूप में आज हम एक बहुत अहम मोड़ पर खड़े हैं.


इतनी बड़ी आपदा, भारत के लिए एक संकेत लेकर आई है. एक संदेश लेकर आई है, एक अवसर लेकर आई है.


मैं एक उदाहरण के साथ अपनी बात बताने का प्रयास करता हूं, जब कोरोना संकट शुरू हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी.


एन-95 मास्क का भारत में नाम मात्र उत्पादन होता था, आज स्थिति ये है कि भारत में ही हर रोज़ दो लाख पीपीई और दो लाख एन 95 मास्क बनाए जा रहे हैं.


ये हम इसलिए कर पाए क्योंकि भारत ने आपदा को, अवसर में बदल दिया.


आपदा को अवसर में बदलने की भारत की ये दृष्टि आत्मनिर्भर भारत के हमारे संकल्प के लिए उतनी ही प्रभावी सिद्ध होने वाली हैं.


साथियों आज विश्व में आत्म निर्भर शब्द के मायने पूरी तरह बदल गए हैं.


ग्लोबल वर्ल्ड में आत्मनिर्भरता की परिभाषा बदल रही है.


अर्थ केंद्रित वैश्वीकरण बनाम मानव केंद्रित वैश्वीकरण की चर्चा आज ज़ोंरों पर है.


विश्व के सामने भारत का मूलभूत चिंतन आज आशा की किरण नज़र आता है.


भारत की संस्कृति, भारत के संस्कार उस आत्मनिर्भरता की बात करते हैं जिसकी आत्मा वासुदेव कुटुम्बकम है. विश्व एक परिवार.


भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है, तब आत्मकेंद्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता है.


भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता होती है. जो संस्कृति जय जगत में विश्वास रखती हो, जो जीव मात्र का कल्याण चाहती हो, जो पूरे विश्व को परिवार मानती हो, जो अपनी आस्था में मातृ भूमिः पुतौ अहम पृथ्वीः इसकी सोच रखती हो, जो पृथ्वी को मां मानती हो, वो संस्कृति, वो भारतभूमि जब आत्मनिर्भर बनती है तब उससे एक सुखी समृद्ध विश्व की संभावना भी सुनिश्चित होती है.


भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है.


भारत के लक्ष्यों का प्रभाव, भारत के कार्यों का प्रभाव विश्व कल्याण पर पड़ता ही है.


जब भारत खुले में शौच से मुक्त होता है तो दुनिया की तस्वीर भी बदलती है. टीबी हो, कुपोषण हो, पोलियो हो, भारत के अभियानों का असर दुनिया पर पड़ता ही है. इंटरनेशनल सोलर अलायंस ग्लोबल वार्मिंग के ख़िलाफ़, भारत की दुनिया को सौग़ात है.


थकना, हारना, टूटना, बिखरना मानव को मंज़ूर नहीं है


निश्चित तौर पर मानव जाति के लिए ये सबकुछ अकल्पनीय है. ये क्राइसिस अभूतपूर्व है.


लेकिन थकना, हारना, टूटना, बिखरना मानव को मंज़ूर नहीं है.


सतर्क रहते हुए, ऐसी जंग के सभी नियमों का पालन करते हुए, अब हमें बचना भी है और आगे बढ़ना भी है.


आज जब दुनिया संकट में है, तब हमें अपना संकल्प और मज़बूत करना होगा.


साथियों हम पिछली शताब्दी से ही लगातार सुनते आए हैं कि इक्कीसवीं सदी हिंदुस्तान की है.


हमें कोरोना से पहले की दुनिया, वैश्विक व्यवस्थाओं को विस्तार से देखने समझने का मौक़ा मिला है.


कोरोना संकट के बाद भी, दुनिया में जो स्थितियां बन रही हैं, उसे भी हम निरंतर देख रहे हैं. जब इन दोनों कालखंडों को भारत के नज़रिए से देखते हैं तो लगता है कि इक्कीसवीं सदी भारत की हो ये हमारा सपना ही नहीं, ये हम सबकी ज़िम्मेदारी भी है.