डब्ल्यूएचओ की चेतावनी, कोई सबूत नहीं है कि कोरोना वायरस से ठीक होने वाले दोबारा न हो बीमार


कोरोना वायरस के संक्रमण से जंग जीतने के बाद खुश होना स्वाभाविक है। वे लोग जो इस संक्रमण से ठीक हो चुके हैं और घर आ चुके हैं उनके लिए यह बात चिंता वाली हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि फिलहाल ऐसा कोई सबूत नहीं है कि जो लोगों कोविड-19 से उबर चुके हैं, वे दूसरी बार कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में नहीं आ सकते हैं। संगठन ने कहा कि कोरोना से उबर चुके लोगों को जोखिम मुक्त नहीं कहा जा सकता है।


हालांकि, डब्ल्यूएचओ ने अपने उस ट्वीट को डिलीट कर दिया, जिसमें यह बात कही थी। संगठन ने कहना था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कोरोना वायरस से रिकवर होने वाले लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज बनती हैं या वे दूसरी बार संक्रमण से सुरक्षित हैं। किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए खुद ही शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी विकसित करती है।
 
दुनियाभर भी सरकारों को डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक हो गए लोगों को अभी 'इम्युनिटी पासपोर्ट' और 'रिस्क फ्री सर्टिफिकेट' न बांटें। उन्होंने यह कहा कि यह इसलिए क्योंकि इसकी कोई भी गारंटी नहीं है कि कोरोना वायरस से ठीक हो चुके लोग पूरी तरह से सुरक्षित हैं। यह इस संभावना के तहत कहा गया कि जिन लोगों की सेहत में सुधार हो गया है वे वायरस को लेकर जरूरी कदम उठाना बंद कर देंगे।
 
डब्ल्यूएचओ ने इससे पहले यह दावा किया था कि यह बीमारी भयंकर रूप दिखा सकती है और यह लंबे वक्त तक रहेगी। आंशिक रूप से एंटीबॉडी टेस्ट्स के आधार पर इम्यूनिटी कार्ड जारी करने की योजना की घोषणा करने वाला चिली पहला देश था। इससे चिंता बढ़ी है क्योंकि टेस्ट कहीं अविश्वसनीय साबित हुए हैं, और कार्ड पाने के लिए कुछ लोग जानबूझकर बीमार हो सकते हैं। यूएस और अन्य देशों ने फिर भी कहा कि वे विकल्प देख रहे हैं।


हालांकि, इस बात पर आम सहमति है कि कोरोना वायरस महामारी को खत्म करने की कुंजी हर्ड इम्यूनिटी यानी शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत पैदा करना है। कुछ स्वास्थ्य समुदायों का मानता है कि हर्ड इम्यूनिटी एक प्रभावी उपकरण हो सकता है जो कोरोना वायरस के प्रभाव को कम कर सके। एम्स के डॉ. अजय मोहन का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोध क्षमता। जब किसी जगह पर लोगों को किसी भयानक बीमारी से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में वैक्सीन दी जाती है तो इससे बाकी लोगों में उस महामारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है। जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है, उन्हें भी यह बीमारी चपेट में कम ले पाती है। इसे ही हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं।


चेचक, खसरा जैसी गंभीर बीमारियों के लड़ने के लिए यह तरीका अपनाया जा चुका है। लेकिन हर्ड इम्यूनिटी का मामला आमतौर पर तब सफल होता है जब कोई वैक्सीन उपलब्ध हो। लेकिन कोविड 19 के मामले में अब तक वैक्सीन नहीं बनीं है। इसी लिए यह चिंता का कारण बना हुआ है।
 
जैसा कि दुनियाभर में वैक्सीन तैयार करने की प्रक्रिया जारी है, डब्ल्यूएचओ ने एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपचार निष्पक्ष रूप से वितरित हो। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन, यूरोपियन कमिशन प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन गठबंधन में शामिल हैं।