कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन होने से कई लोगों को सामान की उपलब्धता और कमाई को लेकर मुश्किलें हो रही हैं.
ऐसे में कई लोग हैं जो दूसरों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं. इन्हीं लोगों में से एक हैं ओडिशा की रहने वालीं छायारानी साहू.
छायारानी साहू एक किसान हैं जो आजकल अपने खेतों की सब्ज़ियों को गांव-गांव में जाकर मुफ़्त में लोगों को दे रही हैं.
लॉकडाउन में बाज़ार बंद होने से लोगों के लिए सब्ज़ियां ख़रीदना मुश्किल हो गया था. ऐसे में उन्होंने लोगों को सब्जियां देकर मदद करने का फ़ैसला किया.
उनकी आठ एकड़ जमीन है जिस पर मुख्यत: भिंडी, बैंगन, कद्दू, टमाटर, मिर्च, अदरक और धनिया जैसी सब्ज़ियां उगाई जाती हैं.
56 साल की छायारानी साहू भद्रक ज़िले में कुरुदा गाँव में रहती हैं.
तीन किलो सब्जी का पैकेट
आमतौर पर वो सब्ज़ियों को वासुदेवपुर बाज़ार में बेचती हैं. साथ ही गांव-गांव गाड़ी ले जाकर भी सब्ज़ियां बेची जाती हैं.
इसी बाज़ार से गांव के दूसरे लोग भी सब्जी ख़रीदते हैं. लेकिन, लॉकडाउन के बाद से ये बाज़ार बंद हो गया था.
छायारानी साहू के छोटे बेटे मानव कुमार साहू बताते हैं, "हमारा ब्लॉक रेड जोन में है तो वहां पर सब्ज़ी का बाज़ार बंद था. इस ब्लॉक के कई गांवों में तो लोग अपने खेतों में सब्ज़ियां उगाते हैं लेकिन उसके आगे के गाँवों में लोगों के पास इतनी ज़मीन नहीं है कि वो सब्ज़ियां उगा सकें. इसलिए वो बाज़ार से सब्ज़ियां ख़रीदते हैं."
"लेकिन, लॉकडाउन के कारण वो सब्ज़ी नहीं ख़रीद पा रहे थे. ऐसे भी परिवार हैं जिनमें चार से पाँच लोग हैं लेकिन उनके पास राशन, खाना-पानी नहीं है. ऐसे में मम्मी ने उन तक सब्जियां पहुंचाने का फैसला किया."
मानव साहू ने बताया, "हम क़रीब तीन किलो सब्जी का एक पैकेट बनाते हैं और उसे घर-घर में पहुंचाते हैं. इस पैकटे में अलग-अलग तरह की सब्जियां होती हैं. हम एक दिन छोड़कर अलग-अलग गांवों में पंचायत से संपर्क करके ज़रूरतमंदों तक सब्ज़ियां पहुंचाते हैं."
30 साल से कर रहीं खेती
छायारानी साहू ने ये काम चार अप्रैल से शुरू किया था. अब तक वो भद्रक ज़िले के 20 से 25 गांवों में लगभग 20 हजार किलो सब्ज़ी बाँट चुकी हैं.
फ़िलहाल उनके छोटे बेटे भी इस काम में मदद कर रहे हैं. छायारानी साहू के दो बेटे और दो बेटियां. बेटियों और बड़े बेटे की शादी हो चुकी है. बड़े बेटे सूरत में काम करते हैं. छोटे बेटे मानव साहू गांव से बाहर पीएचडी कर रहे हैं.
छायारानी तीस साल से खेती कर रही हैं. वो बुआई से लेकर, कीटनाशकों का छिड़काव, फसल की कटाई और छंटाई तक सभी काम में खुद शामिल रहती हैं.
वो और उनके पति सिर्फ़ उड़िया भाषा ही समझते और बोलते हैं. ऐसे में हमने उनके छोटे बेटे के ज़रिए उनसे बात की जो हिंदी समझते और बोलते हैं.